कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि अगर उनकी सरकार आई तो सबसे ग़रीब 20 प्रतिशत परिवारों को सालाना 72,000 रुपए दिए जाएंगे.
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस 21वीं सदी में इस देश से ग़रीबी को हमेशा के लिए मिटाना चाहती है और ग़रीबों को 6,000 रुपए महीने दिया जा सकता है.
राहुल गांधी ने बताया कि कांग्रेस न्यूनतम आय योजना को लागू करेगी. उन्होंने बताया कि देश भर में न्यूतम आय 12 हजार रुपये महीना होना चाहिए.
उन्होंने कहा, "इस तक पहुंचने के लिए कांग्रेस पार्टी सरकार में आने पर देश की 20 फ़ीसदी निर्धन परिवारों को 72 हज़ार रुपये सालाना की मदद करेगी. यानी छह हज़ार रुपये की मदद की जाएगी."
उन्होंने कहा कि अगर नरेंद्र मोदी हिंदुस्तान के सबसे अमीर लोगों को पैसे दे सकते हैं तो हम ग़रीबों के लिए ये कर सकते हैं.
किसानों को मोदी सरकार की ओर से घोषित छह हज़ार रुपये की सालाना मदद पर तंज कसते हुए राहुल ने कहा कि 3.5 रुपये प्रति दिन दिए जाते हैं और प्राईवेट हवाई जहाज़ वालों को करोड़ों रुपये दे दिए जाते हैं.
ये पूछे जाने पर कि ये स्कीम के लिए पैसा कहां जाएगा, उन्होंने कहा, "हम चार पांच महीने से स्टडी कर रहे हैं, हमने दुनिया के अर्थशास्त्रियों से बात करने के बाद इसे तैयार किया है. हमारे पास सारी कैल्कुलेशन है."
दरअसल, राहुल गांधी ने जो घोषणा की है, उसके बारे में दो महीने पहले ही उन्होंने छत्तीसगढ़ के रायपुर में कहा था कि कांग्रेस लोगों को न्यूनतम आय की गारंटी देने वाली योजना पर काम कर रही है.
कांग्रेस एक तरफ इसे ऐतिहासिक योजना बता रही है लेकिन एक अहम सवाल ये बना हुआ है कि इसके लिए संसाधन कहां से जुटाए जाएंगे.
राहुल गांधी ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में कहा, "ये योजना डूएबल है, हम इसे लागू कर सकते हैं, हमने पड़ताल की है."
लेकिन कांग्रेस के दावे से इतर इस नीति पर सवाल उठाने वाले भी कम नहीं हैं. बीबीसी के सौतिक विश्वास से एमआईटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अभिजीत विनायक बनर्जी ने कहा, "न्यूनतम आय योजना नैतिक रूप से तो बहुत अच्छा है, इसके लिए काफी सहानुभूति हो सकती है. लेकिन इसे भारत जैसे विशाल देश में लागू करने में काफ़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा."
राहुल गांधी ने कहा कि मनरेगा में हमने 14 करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला. उन्होंने कहा,"हमने मनरेगा दिया था. हम ये भी करके दिखा देंगे."
"अब ये दूसरा चरण है, अब हम 25 करोड़ लोगों की ग़रीबी ख़त्म करेंगे. हम देश में गरीबी का पूरा ख़ात्मा करना चाहते हैं."
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान में सभी लोग काम कर रहे हैं लेकिन बहुत से लोगों की आमदनी बहुत कम है.
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, "अगर आपकी आमदनी 12,000 रुपए से कम है तो हम उसे वहाँ तक पहुँचा देंगे."
उन्होंने पीएम मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस देश का झंडा एक है मगर प्रधानमंत्री की राजनीति से दो हिंदोस्तान बन रहा है - एक अमीरों का और दूसरा गरीबों का, नौजवानों का.
उन्होंने दावा किया कि ये कोई स्कीम नहीं है, बल्कि गरीबी के ख़िलाफ़ अंतिम लड़ाई है.
उधर बीजेपी नेता राम माधव ने इन दावों पर तंज कसते हुए सवाल किए हैं.
राम माधव ने ट्वीट किया है कि 'अगर आप अपनी हार को लेकर निश्चित हैं तो आप चांद तारे लाने का भी वादा कर सकते हैं. इसे कौन गंभीरता से लेता है. पहले ही अलग अलग योजनाओं से ग़रीब परिवारों को काफ़ी मदद मिलती है. क्या ये नई घोषणा उनसे अलग है या उनको भी इसमें शामिल कर लिया जाएगा?
Tuesday, March 26, 2019
Wednesday, March 20, 2019
हिंदुस्तानियों, कराची में प्लॉट कट रहे हैं जल्दी बुकिंग करवाओ: ब्लॉग
अगर आप पड़ोसी देश पाकिस्तान के कराची, रावलपिंडी या लाहौर शहर में मकान-दुकान या प्लॉट ख़रीदना चाहते हैं तो आज ही बुकिंग करवानी पड़ेगी, तब जाकर 2025 में डिलिवरी मिल पाएगी. बिल्डरों और प्रॉपर्टी डीलरों का हाल तो आप सबको मालूम ही है- जैसा हिंदुस्तान में, वैसा पाकिस्तान में.
अगर आज चूक गए तो पाँच-सात साल बाद आप पछताएँगे, जब मैं कराची की क्लिफ़्टन या डिफेंस जैसी पॉश कॉलोनी के अपने बंगले में दोस्तों के साथ क़व्वाली की महफ़िलें इन्जॉइ कर रहा होऊँगा और आप सिर धुनेंगे कि 2019 में बुकिंग करवा ली होती तो आज हम भी मज़े करते.
आप अब तक अख़बारों में पढ़ ही चुके होंगे कि पाकिस्तान सन 2025 के बाद हिंदुस्तान का हिस्सा बनने वाला है. ये माडर्न हेयर कटिंग सैलून में सुनी गई गप्प नहीं है और न ही किसी राह चलते ऐरे गैरे ने होली की मस्ती में उड़ाई है.
उन्होंने सभा में मौजूद लोगों से कहा, "आप लिखकर लीजिए, पाँच-सात साल बाद आप कहीं कराची, लाहौर, रावलपिंडी, सियालकोट में मकान ख़रीदेंगे और बिज़नेस करने का मौक़ा मिलेगा."
जब से मैंने इंद्रेश कुमार का ये ऐलान सुना तभी से कराची में अपने दोस्त वुसतुल्लाह ख़ान को फ़ोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ पर वो पाकिस्तानी क्या जो वक़्त-ज़रूरत पर काम आ जाए. (केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के प्रकोप से बचने के लिए ये वाक्य लिखना ज़रूरी समझा गया).
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है कि वुसत कराची के किसी प्रापर्टी डीलर या फ़ौजी जरनैल से कह-कुहा के एक प्लॉट या फ़्लैट का इंतज़ाम तो करवा ही देंगे. कराची में यूँ भी पान चबाकर उर्दू बोलने वाले यूपी के लोगों की भरमार है. उनके बीच में मुझे घर जैसा महसूस होगा.
लाहौर या सियालकोट में प्लॉट लिया तो बस हान्जी, हान्जी कहते रह जाऊँगा. दिल्ली में इतने बरस रहने के बावजूद हान्जी, हान्जी कहने की आदत नहीं डाल पाया हूँ.
बहरहाल, लोकसभा चुनावों से ऐन पहले इंद्रेश कुमार ने जिस तरह से अखण्ड भारत के सपने का रिन्युअल किया है उसे देखते हुए श्रद्धा से सिर नतमस्तक हुआ जाता है. उनके इस प्रोजेक्ट में सिर्फ़ पाकिस्तान होता तो आप उन पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एजेंडा चलाने का आरोप लगा सकते थे. लेकिन वो सिर्फ़ पाकिस्तान की बात ही नहीं कर रहे हैं.
इंद्रेश कुमार बोले, "भारत सरकार ने पहली बार टफ़ लाइन ली है क्योंकि सेना पॉलिटिकल विल पावर पर एक्ट करती है. इसलिए हम ये सपना लेके बैठे हैं कि लाहौर जाकर बैठेंगे और कैलाश-मानसरोवर (यात्रा) के लिए इजाज़त चाइना से नहीं लेनी पड़ेगी. ढाका में हमने अपनी हाथ की सरकार बनाई है. एक यूरोपियन यूनियन जैसा भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत जन्म लेने के रास्ते पर जा सकता है."
इससे ज़्यादा और क्या चाहिए आपको? एक झटके में इंद्रेश कुमार ने पाकिस्तान को भारत में मिला लिया, चीन को निपटा दिया, यानी अब आपको कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन के सामने वीज़ा के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. उत्तराखण्ड के काठगोदाम तक रेल पर चढ़कर जाइए, वहाँ से सूमो पक़ड़कर पिथौरागढ़ और आगे धारचूला पहुँचिए... बस हिमालय पार किया और पहुँच गए गर्रर्रर्रर्रर्रर्र से कैलाश-मानसरोवर.
अब जब पाकिस्तान और चीन निपटा ही दिए गए हैं तो बांग्लादेश का क्या ज़िक्र किया जाए. इंद्रेश जी ने कहा ही है कि "ढाका में हमने अपने हाथ की सरकार बनाई है." भारत माता को अब परम वैभव तक पहुँचने से कौन रोक सकता है?"
बस एक यही बात समझ में नहीं आई कि जब सेना तैयार है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा रहनुमा हमारे सामने है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक पिछले 90 बरस से रोज़ाना सुबह देश भर के पार्कों में खो-खो और लाठियाँ भाँजते हुए तैयारी कर रहे हैं और गौ-रक्षक जी-जान लगाकर या जान लेकर राष्ट्र सेवा में लगे हुए हैं, तो इंद्रेश जी ने अपना प्रोजेक्ट 2025 तक के लिए क्यों टाल दिया?
चोट तो तभी करनी होती है जब लोहा गरम होता है. अभी बालाकोट का लोहा भी गरम है और लोकसभा चुनाव से पहले पूरा देश राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगकर गा भी रहा है- रंग दे मोहे गेरुआ. तो फिर प्रोजेक्ट अखण्ड भारत पाँच-सात साल के लिए टाला क्यों जा रहा है?
मेरी सीमित समझ से इसका सिर्फ़ एक ही कारण हो सकता है कि 2025 एक पवित्र वर्ष होगा. इस साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सौ वर्ष पूरे करेगा.
ठीक ही तो है - संघ की जन्मशती के पावन अवसर पर भारत माता के सभी बच्चों यानी पाकिस्तान, तिब्बत, बांग्लादेश आदि की घर वापसी भी हो जाएगी और बन जाएगा 'भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत' जिसे संयुक्त राष्ट्र में 'बीयूएबी' के नाम से जाना जाएगा!
तो प्रोजेक्ट 'बीयूएबी' के तहत भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के कैलाश-मानसरोवर तक होने वाले विस्तार की कल्पना कर करके मेरा मन थोड़ा आध्यात्मिक सा हुआ जा रहा है. जो काम पिछले सत्तर बरस में काँग्रेस नहीं कर पाई, इंद्रेश जी को भरोसा है कि वो अब होकर रहेगा.
क्या हुआ अगर कराची में हमारे मित्र वुसतउल्लाह ख़ान फ़ोन नहीं उठा रहे.
ना मिले कराची या सियालकोट में प्लाट. हम पवित्र मानसरोवर ताल के किनारे एक ध्यान केंद्र खोल लेंगे. इसके लिए 2025 के बाद चीन से इजाज़त लेने की ज़रूरत तो रह नहीं जाएगी- मेहसाणा से लेकर मानसरोवर तक हम हिंदुस्तानी जहाँ चाहें वहाँ प्लाट ख़रीद लेंगे.
ध्यान दीजिए प्रोजेक्ट बीयूएबी यानी 'भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत' फ़िलहाल नरेंद्र मोदी-अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में नहीं आया है.
आम चुनाव से ठीक पहले आरएसएस के इंद्रेश कुमार ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत कुछ श्रोताओं को इस प्रोजेक्ट की आउटलाइन भर दी है.
कराची में मकान ख़रीदने, लाहौर में बिज़नेस करने या मानसरोवर में आश्रम खोलने का सपना हम में से कुछ लोगों को तो मतदान बूथ में 'सही बटन' दबाने को प्रेरित करेगा.
अगर आज चूक गए तो पाँच-सात साल बाद आप पछताएँगे, जब मैं कराची की क्लिफ़्टन या डिफेंस जैसी पॉश कॉलोनी के अपने बंगले में दोस्तों के साथ क़व्वाली की महफ़िलें इन्जॉइ कर रहा होऊँगा और आप सिर धुनेंगे कि 2019 में बुकिंग करवा ली होती तो आज हम भी मज़े करते.
आप अब तक अख़बारों में पढ़ ही चुके होंगे कि पाकिस्तान सन 2025 के बाद हिंदुस्तान का हिस्सा बनने वाला है. ये माडर्न हेयर कटिंग सैलून में सुनी गई गप्प नहीं है और न ही किसी राह चलते ऐरे गैरे ने होली की मस्ती में उड़ाई है.
उन्होंने सभा में मौजूद लोगों से कहा, "आप लिखकर लीजिए, पाँच-सात साल बाद आप कहीं कराची, लाहौर, रावलपिंडी, सियालकोट में मकान ख़रीदेंगे और बिज़नेस करने का मौक़ा मिलेगा."
जब से मैंने इंद्रेश कुमार का ये ऐलान सुना तभी से कराची में अपने दोस्त वुसतुल्लाह ख़ान को फ़ोन लगाने की कोशिश कर रहा हूँ पर वो पाकिस्तानी क्या जो वक़्त-ज़रूरत पर काम आ जाए. (केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के प्रकोप से बचने के लिए ये वाक्य लिखना ज़रूरी समझा गया).
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है कि वुसत कराची के किसी प्रापर्टी डीलर या फ़ौजी जरनैल से कह-कुहा के एक प्लॉट या फ़्लैट का इंतज़ाम तो करवा ही देंगे. कराची में यूँ भी पान चबाकर उर्दू बोलने वाले यूपी के लोगों की भरमार है. उनके बीच में मुझे घर जैसा महसूस होगा.
लाहौर या सियालकोट में प्लॉट लिया तो बस हान्जी, हान्जी कहते रह जाऊँगा. दिल्ली में इतने बरस रहने के बावजूद हान्जी, हान्जी कहने की आदत नहीं डाल पाया हूँ.
बहरहाल, लोकसभा चुनावों से ऐन पहले इंद्रेश कुमार ने जिस तरह से अखण्ड भारत के सपने का रिन्युअल किया है उसे देखते हुए श्रद्धा से सिर नतमस्तक हुआ जाता है. उनके इस प्रोजेक्ट में सिर्फ़ पाकिस्तान होता तो आप उन पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ एजेंडा चलाने का आरोप लगा सकते थे. लेकिन वो सिर्फ़ पाकिस्तान की बात ही नहीं कर रहे हैं.
इंद्रेश कुमार बोले, "भारत सरकार ने पहली बार टफ़ लाइन ली है क्योंकि सेना पॉलिटिकल विल पावर पर एक्ट करती है. इसलिए हम ये सपना लेके बैठे हैं कि लाहौर जाकर बैठेंगे और कैलाश-मानसरोवर (यात्रा) के लिए इजाज़त चाइना से नहीं लेनी पड़ेगी. ढाका में हमने अपनी हाथ की सरकार बनाई है. एक यूरोपियन यूनियन जैसा भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत जन्म लेने के रास्ते पर जा सकता है."
इससे ज़्यादा और क्या चाहिए आपको? एक झटके में इंद्रेश कुमार ने पाकिस्तान को भारत में मिला लिया, चीन को निपटा दिया, यानी अब आपको कैलाश-मानसरोवर की यात्रा करने के लिए चीन के सामने वीज़ा के लिए हाथ नहीं फैलाना पड़ेगा. उत्तराखण्ड के काठगोदाम तक रेल पर चढ़कर जाइए, वहाँ से सूमो पक़ड़कर पिथौरागढ़ और आगे धारचूला पहुँचिए... बस हिमालय पार किया और पहुँच गए गर्रर्रर्रर्रर्रर्र से कैलाश-मानसरोवर.
अब जब पाकिस्तान और चीन निपटा ही दिए गए हैं तो बांग्लादेश का क्या ज़िक्र किया जाए. इंद्रेश जी ने कहा ही है कि "ढाका में हमने अपने हाथ की सरकार बनाई है." भारत माता को अब परम वैभव तक पहुँचने से कौन रोक सकता है?"
बस एक यही बात समझ में नहीं आई कि जब सेना तैयार है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसा रहनुमा हमारे सामने है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक पिछले 90 बरस से रोज़ाना सुबह देश भर के पार्कों में खो-खो और लाठियाँ भाँजते हुए तैयारी कर रहे हैं और गौ-रक्षक जी-जान लगाकर या जान लेकर राष्ट्र सेवा में लगे हुए हैं, तो इंद्रेश जी ने अपना प्रोजेक्ट 2025 तक के लिए क्यों टाल दिया?
चोट तो तभी करनी होती है जब लोहा गरम होता है. अभी बालाकोट का लोहा भी गरम है और लोकसभा चुनाव से पहले पूरा देश राष्ट्रभक्ति के रंग में रंगकर गा भी रहा है- रंग दे मोहे गेरुआ. तो फिर प्रोजेक्ट अखण्ड भारत पाँच-सात साल के लिए टाला क्यों जा रहा है?
मेरी सीमित समझ से इसका सिर्फ़ एक ही कारण हो सकता है कि 2025 एक पवित्र वर्ष होगा. इस साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सौ वर्ष पूरे करेगा.
ठीक ही तो है - संघ की जन्मशती के पावन अवसर पर भारत माता के सभी बच्चों यानी पाकिस्तान, तिब्बत, बांग्लादेश आदि की घर वापसी भी हो जाएगी और बन जाएगा 'भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत' जिसे संयुक्त राष्ट्र में 'बीयूएबी' के नाम से जाना जाएगा!
तो प्रोजेक्ट 'बीयूएबी' के तहत भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के कैलाश-मानसरोवर तक होने वाले विस्तार की कल्पना कर करके मेरा मन थोड़ा आध्यात्मिक सा हुआ जा रहा है. जो काम पिछले सत्तर बरस में काँग्रेस नहीं कर पाई, इंद्रेश जी को भरोसा है कि वो अब होकर रहेगा.
क्या हुआ अगर कराची में हमारे मित्र वुसतउल्लाह ख़ान फ़ोन नहीं उठा रहे.
ना मिले कराची या सियालकोट में प्लाट. हम पवित्र मानसरोवर ताल के किनारे एक ध्यान केंद्र खोल लेंगे. इसके लिए 2025 के बाद चीन से इजाज़त लेने की ज़रूरत तो रह नहीं जाएगी- मेहसाणा से लेकर मानसरोवर तक हम हिंदुस्तानी जहाँ चाहें वहाँ प्लाट ख़रीद लेंगे.
ध्यान दीजिए प्रोजेक्ट बीयूएबी यानी 'भारतीय यूनियन ऑफ़ अखण्ड भारत' फ़िलहाल नरेंद्र मोदी-अमित शाह और भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में नहीं आया है.
आम चुनाव से ठीक पहले आरएसएस के इंद्रेश कुमार ने देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत कुछ श्रोताओं को इस प्रोजेक्ट की आउटलाइन भर दी है.
कराची में मकान ख़रीदने, लाहौर में बिज़नेस करने या मानसरोवर में आश्रम खोलने का सपना हम में से कुछ लोगों को तो मतदान बूथ में 'सही बटन' दबाने को प्रेरित करेगा.
Friday, March 8, 2019
बिहार में एक और बालिका गृह कांड का डर क्यों है?: बीबीसी पड़ताल
यह सवाल इसलिए क्योंकि मई 2018 में समाज कल्याण विभाग के निदेशक को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ यानी टिस द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में बिहार के सभी 110 शेल्टर होम्स में से 104 की स्थिति ख़राब पाई गई थी. उनमें से 17 की हालत चिंताजनक थी. मुज़फ़्फ़रपुर का बालिका गृह उन्हीं 17 में से एक था.
जहां तक TISS की रिपोर्ट पर सरकार की गंभीरता का सवाल है तो वह मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के मामले में सरकार की भूमिका से ही स्पष्ट हो जाता है. और सरकार की भूमिका तब सवालों के घेरे में आ जाती है जब हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आख़िर मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड हुआ क्यों?
क्योंकि, जिस मामले को TISS की टीम ने 9 नवंबर 2017 को बालिका गृह में आधा घंटा बिताकर ही समझ लिया था और उसका ज़िक्र अपनी रिपोर्ट में किया था, सरकार और सिस्टम मिलकर सालों तक उसे समझ नहीं पाए. जबकि समाज कल्याण विभाग, बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग के अधिकारी नियमित रूप से जांच के लिए बालिका गृह जाते रहे थे.
इससे एक बात तो साफ़ है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड कभी नहीं होता अगर सरकार और सिस्टम के लोग जो नियमित रूप से जांच अथवा निरीक्षण के लिए बालिका गृह जाते रहे थे, अपना काम बख़ूबी ईमानदारी के साथ करते.
बालिका गृह के रिमार्क्स रजिस्टर में वहां सभी आने-जाने वालों के नाम दर्ज थे और उनके रिमार्क्स भी. बालिका गृह की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान कर्मियों ने बताया था कि जितने भी मंत्री, नेता, अधिकारी बालिकागृह आए सभी के रिमार्क्स उस रजिस्टर में दर्ज हैं. मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के मुताबिक़ अब उस रजिस्टर को सीबीआई ने ज़ब्त कर लिया है.
अगर सरकार गंभीर होती तो ज़रूर उन लोगों से सवाल किया जाता कि आख़िर उनके निरीक्षण में कभी ऐसी बात सामने क्यों नहीं आई जो TISS के लोगों ने आधे घंटे में उजागर कर दिया था. सीबीआई की चार्जशीट में उस रिमार्क्स रजिस्टर को आधार बनाया गया है कि नहीं, मालूम नहीं. लेकिन अगर आधार बनाया जाएगा तो मामला उन सभी के ख़िलाफ़ बनेगा जो बालिका गृह आकर सब देख जाने के बाद भी अच्छे रिमार्क्स लगाकर गए थे. इन लोगों में बिहार सरकार के कई मंत्री, नेता और अफ़सर शामिल हैं.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले की आगे की जांच भी सरकार की गंभीरता पर सवाल खड़े करती है. हाल के दिनों में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की पीड़ित लड़कियों के रखरखाव और देखभाल में प्रबंधन की चूक का.
मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित लड़कियों को जिन्हें मधुबनी और मोकामा के शेल्टर होम्स में भेजा गया था, वहां से कई दफे़ लड़कियां लापता हुईं. 12 जुलाई को मधुबनी से लापता एक लड़की जो मामले की गवाह भी थी, उसका आज तक कोई पता नहीं लग सका है.
हाल ही में मोकामा के शेल्टर होम से भी मुज़फ़्फ़रपुर की चार लड़कियाँ लापता हुईं थीं, जो मामले की गवाह और पीड़िता दोनो थीं. पुलिस ने दावा किया है कि उसने सभी लड़कियों को बरामद कर लिया है. लेकिन इसपर अभी सवाल है! क्योंकि मधुबनी से लापता लड़की का जो पुलिस महीनों बाद तक कोई पता नहीं लगा सकी है, उसने दो दिनों के अदंर मोकामा से लापता सभी सातों लड़कियों को सकुशल बरामद कर लिया.
मुज़फ़्फ़रपुर के अलावा भी पटना, मोतिहारी और सीतामढ़ी के दूसरे शेल्टर होम्स से लड़कियां, महिलाएं और बच्चे रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता हुए हैं. इनका ज़िक्र न सिर्फ़ TISS की रिपोर्ट में था, बल्कि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के उजागर होने के बाद इन शेल्टर होम्स की कुव्यवस्था और कुप्रबंधन की ख़बरें भी सुर्ख़ियों में शामिल हुई थी.
दरअसल, आज तक यही सवाल कभी सुर्ख़ी नहीं बन पाया है कि बिहार के शेल्टर होम्स में ऐसे कांड हो क्यों रहे हैं?
यदि हम मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड और पटना शेल्टर होम के मनीष दयाल कांड को ग़ौर से देखें तो पाएंगे कि दोनों शेल्टर होमों को नियम और शर्तें नहीं पालन करने के बावजूद भी चलाने का ठेका दिया गया. जिन लोगों और संस्थाओं को शेल्टर होम चलाने को मिले उन्हें और भी तमाम तरह के (एड्स कंट्रोल, महिला पुनर्वास, वगैरह) ठेके सरकार द्वारा दिए गए.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले में हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार कहते हैं कि, "यह एक सिंडिकेट की तरह लगता है. इसीलिए इसपर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. ब्रजेश को तीन अख़बार चलाने का लाइसेंस जिस आईपीआरडी विभाग ने दिया था, उसका प्रभार जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, तभी से उन्हीं के पास है. मनीषा दयाल के एनजीओ को विभाग ने सबसे ज़रूरी नियम को ताक पर रखकर केवल दो सालों में शेल्टर होम चलाने का टेंडर दे दिया. लेकिन इन ग़लतियों के लिए किसी को ज़िम्मेदार तक नहीं ठहराया गया. बल्कि और संरक्षण दिया गया."
'मुज़फ़्फ़रपुर कांड पर उबल क्यों नहीं पड़ता देश'
संतोष कहते हैं, "मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद भी यह सिंडिकेट प्रोटेक्शन सिस्टम नहीं बदला है. अभी भी उन एनजीओ को शेल्टर होम्स को ठेके पर चलाने को दिया जा रहा, जिनके शेल्टर होम पर TISS की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए थे. जबकि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद नीतीश कुमार ने ये बयान दिया था कि सरकार सभी शेल्टर होम्स को अपने नियंत्रण में लेगी."
जहां तक TISS की रिपोर्ट पर सरकार की गंभीरता का सवाल है तो वह मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड के मामले में सरकार की भूमिका से ही स्पष्ट हो जाता है. और सरकार की भूमिका तब सवालों के घेरे में आ जाती है जब हम यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आख़िर मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड हुआ क्यों?
क्योंकि, जिस मामले को TISS की टीम ने 9 नवंबर 2017 को बालिका गृह में आधा घंटा बिताकर ही समझ लिया था और उसका ज़िक्र अपनी रिपोर्ट में किया था, सरकार और सिस्टम मिलकर सालों तक उसे समझ नहीं पाए. जबकि समाज कल्याण विभाग, बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग के अधिकारी नियमित रूप से जांच के लिए बालिका गृह जाते रहे थे.
इससे एक बात तो साफ़ है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड कभी नहीं होता अगर सरकार और सिस्टम के लोग जो नियमित रूप से जांच अथवा निरीक्षण के लिए बालिका गृह जाते रहे थे, अपना काम बख़ूबी ईमानदारी के साथ करते.
बालिका गृह के रिमार्क्स रजिस्टर में वहां सभी आने-जाने वालों के नाम दर्ज थे और उनके रिमार्क्स भी. बालिका गृह की ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान कर्मियों ने बताया था कि जितने भी मंत्री, नेता, अधिकारी बालिकागृह आए सभी के रिमार्क्स उस रजिस्टर में दर्ज हैं. मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस के मुताबिक़ अब उस रजिस्टर को सीबीआई ने ज़ब्त कर लिया है.
अगर सरकार गंभीर होती तो ज़रूर उन लोगों से सवाल किया जाता कि आख़िर उनके निरीक्षण में कभी ऐसी बात सामने क्यों नहीं आई जो TISS के लोगों ने आधे घंटे में उजागर कर दिया था. सीबीआई की चार्जशीट में उस रिमार्क्स रजिस्टर को आधार बनाया गया है कि नहीं, मालूम नहीं. लेकिन अगर आधार बनाया जाएगा तो मामला उन सभी के ख़िलाफ़ बनेगा जो बालिका गृह आकर सब देख जाने के बाद भी अच्छे रिमार्क्स लगाकर गए थे. इन लोगों में बिहार सरकार के कई मंत्री, नेता और अफ़सर शामिल हैं.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले की आगे की जांच भी सरकार की गंभीरता पर सवाल खड़े करती है. हाल के दिनों में इसका सबसे बड़ा उदाहरण देखने को मिलता है मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह की पीड़ित लड़कियों के रखरखाव और देखभाल में प्रबंधन की चूक का.
मुज़फ़्फ़रपुर की पीड़ित लड़कियों को जिन्हें मधुबनी और मोकामा के शेल्टर होम्स में भेजा गया था, वहां से कई दफे़ लड़कियां लापता हुईं. 12 जुलाई को मधुबनी से लापता एक लड़की जो मामले की गवाह भी थी, उसका आज तक कोई पता नहीं लग सका है.
हाल ही में मोकामा के शेल्टर होम से भी मुज़फ़्फ़रपुर की चार लड़कियाँ लापता हुईं थीं, जो मामले की गवाह और पीड़िता दोनो थीं. पुलिस ने दावा किया है कि उसने सभी लड़कियों को बरामद कर लिया है. लेकिन इसपर अभी सवाल है! क्योंकि मधुबनी से लापता लड़की का जो पुलिस महीनों बाद तक कोई पता नहीं लगा सकी है, उसने दो दिनों के अदंर मोकामा से लापता सभी सातों लड़कियों को सकुशल बरामद कर लिया.
मुज़फ़्फ़रपुर के अलावा भी पटना, मोतिहारी और सीतामढ़ी के दूसरे शेल्टर होम्स से लड़कियां, महिलाएं और बच्चे रहस्यमयी परिस्थितियों में लापता हुए हैं. इनका ज़िक्र न सिर्फ़ TISS की रिपोर्ट में था, बल्कि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के उजागर होने के बाद इन शेल्टर होम्स की कुव्यवस्था और कुप्रबंधन की ख़बरें भी सुर्ख़ियों में शामिल हुई थी.
दरअसल, आज तक यही सवाल कभी सुर्ख़ी नहीं बन पाया है कि बिहार के शेल्टर होम्स में ऐसे कांड हो क्यों रहे हैं?
यदि हम मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड और पटना शेल्टर होम के मनीष दयाल कांड को ग़ौर से देखें तो पाएंगे कि दोनों शेल्टर होमों को नियम और शर्तें नहीं पालन करने के बावजूद भी चलाने का ठेका दिया गया. जिन लोगों और संस्थाओं को शेल्टर होम चलाने को मिले उन्हें और भी तमाम तरह के (एड्स कंट्रोल, महिला पुनर्वास, वगैरह) ठेके सरकार द्वारा दिए गए.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह मामले में हाई कोर्ट तथा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले संतोष कुमार कहते हैं कि, "यह एक सिंडिकेट की तरह लगता है. इसीलिए इसपर आज तक कोई कार्रवाई नहीं हुई. ब्रजेश को तीन अख़बार चलाने का लाइसेंस जिस आईपीआरडी विभाग ने दिया था, उसका प्रभार जब से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, तभी से उन्हीं के पास है. मनीषा दयाल के एनजीओ को विभाग ने सबसे ज़रूरी नियम को ताक पर रखकर केवल दो सालों में शेल्टर होम चलाने का टेंडर दे दिया. लेकिन इन ग़लतियों के लिए किसी को ज़िम्मेदार तक नहीं ठहराया गया. बल्कि और संरक्षण दिया गया."
'मुज़फ़्फ़रपुर कांड पर उबल क्यों नहीं पड़ता देश'
संतोष कहते हैं, "मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद भी यह सिंडिकेट प्रोटेक्शन सिस्टम नहीं बदला है. अभी भी उन एनजीओ को शेल्टर होम्स को ठेके पर चलाने को दिया जा रहा, जिनके शेल्टर होम पर TISS की रिपोर्ट में सवाल उठाए गए थे. जबकि मुज़फ़्फ़रपुर कांड के बाद नीतीश कुमार ने ये बयान दिया था कि सरकार सभी शेल्टर होम्स को अपने नियंत्रण में लेगी."
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