Sunday, January 27, 2019

भारत रत्न प्रणब मुखर्जी बीजेपी के कितने काम आएँगे? : ब्लॉग

प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. यह चर्चा प्रणब मुखर्जी की योग्यता के बारे में नहीं है, बल्कि चुनावी साल में बड़े प्रतीकात्मक फ़ैसले के ज़रिए दिए जाने वाले संदेश के बारे में है.

भारत रत्न और पद्म पुरस्कार हमेशा से ही राजनीतिक रहे हैं, इतने राजनीतिक रहे हैं कि 1988 में चुनाव से ठीक पहले तमिलनाडु के वोटरों को रिझाने के लिए उस वक़्त की राजीव गांधी सरकार ने एमजी रामचंद्रन को भारत रत्न दे दिया था, जिसकी खासी आलोचना हुई थी.

बहरहाल, 1984 और 2004 में योग्य माने जाने के बावजूद प्रधानमंत्री बनने से चूक गए, या गांधी परिवार के विश्वासपात्र न होने की वजह से किनारे कर दिए गए प्रणब मुखर्जी को बीजेपी ने कांग्रेस की परिवार केंद्रित राजनीति के शिकार के रूप में पेश किया है.

बीजेपी का कथानक ये है कि कांग्रेस ने एक ख़ास परिवार से बाहर के लोगों को वह जगह नहीं दी, जिसके वे हकदार थे. सरदार पटेल, शास्त्री, नरसिंह राव से लेकर प्रणब मुखर्जी तक. प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देकर बीजेपी ने इसी स्क्रिप्ट को और दमदार बनाया है.

वैसे कांग्रेस की विचारधारा का प्रमुख चेहरा रहे प्रणब मुखर्जी को पार्टी से अलग एक विशेष पहचान देने की कोशिश पिछले साल भी दिखी थी जब उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या आरएसएस के एक आयोजन में मुख्य अतिथि बनाया गया था. तब इसे लेकर काफ़ी बहस हुई थी और प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी तक ने अपने पिता के फ़ैसले पर सवाल उठाया था.

बहरहाल प्रणब मुखर्जी ने 7 जून 2018 को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में भाषण दिया और उसमें उन्होंने राष्ट्र, राष्ट्रवाद और देशभक्ति को लेकर जो कुछ कहा, उसने ये स्पष्ट कर दिया कि मंच भले ही अलग हो, उनकी सोच में कोई भी फ़र्क़ नहीं आया है.

पिछले साल की उस घटना के बाद अब नए साल में प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने का फ़ैसला फिर एक बार उन्हें गांधी परिवार की धुरी पर टिकी कांग्रेस से अलग पहचान देने की क़वायद लगती है.

लेकिन बात इतनी ही नहीं है, पश्चिम बंगाल में पैर जमाने के लिए ज़ोरदार संघर्ष कर रही बीजेपी बंगाली अस्मिता का सम्मान करती हुई भी दिखना चाहती है.

बीजेपी चुनाव प्रचार में खुलकर कहेगी कि कांग्रेस पर जिस परिवार का कब्ज़ा है उसने बंगाल के सपूत को दो बार प्रधानमंत्री बनने से रोका, हमने विरोधी पार्टी का होने के बावजूद उसे सर्वोच्च सम्मान दिया. बंगाल से बीजेपी को बहुत उम्मीद है.

उसे लगता है कि उत्तर भारत और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में होने वाले संभावित नुक़सान की भरपाई बंगाल से हो सकती है.

कुल मिलाकर ये कि कांग्रेस की फ़ैमिली नंबर वन को ओछा दिखाते हुए 'मोरल हाई ग्राउंड' लेना, बंगाल में उसका राजनीतिक लाभ उठाना और यह भी कहना कि बीजेपी देश के सभी सपूतों का सम्मान करती है जबकि कांग्रेस सिर्फ़ एक ख़ास परिवार के लोगों का.

बीजेपी ने भारत रत्न वाली श्रेणी में प्रणब मुखर्जी को डालकर उन्हें भारत रत्न पाने वाले कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के बराबर खड़ा कर दिया है जिनमें इंदिरा गांधी और राजीव गांधी शामिल हैं, इस तरह भारत के राजनीतिक इतिहास में उन्हें सोनिया गांधी से ऊपर बिठाकर राजनीतिक चिकोटी भी काटी है.

इस वक़्त पूर्वोत्तर भारत में गहरा असंतोष है, नागरिकता क़ानून को लेकर भारी हंगामा है और असम में बीजेपी ने जिस तरह अपने साझीदारों के साथ मिलकर पैठ बनाई थी वह ख़तरे में पड़ गई है.

बीजेपी की साझीदार असम गण परिषद ने इसी मुद्दे पर उसका साथ छोड़ दिया, यहां तक कि बीजेपी की असम प्रदेश इकाई में फूट पड़ने की ख़बरें आ रही हैं क्योंकि नागरिकता बिल ने लोगों को दो धड़ों में बांट दिया है.

ऐसा नहीं है कि भूपेन हज़ारिका भारत रत्न सम्मान पाने वाले पहले असमिया हैं, उनसे पहले स्वतंत्रता सेनानी और राज्य के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बोर्दोलोइ को यह सम्मान 1999 में मिल चुका है.

जाने-माने संगीतकार, गायक और फ़िल्मकार भूपेन हज़ारिका को पूर्वोत्तर भारत की आवाज़ के रूप में जाना जाता है और असम में उनका बहुत सम्मान रहा है. 2004 में बीजेपी में शामिल हुए हज़ारिका को भारत रत्न देकर बीजेपी ने इसी आग को ठंडा करने की कोशिश की है.

यह पहली बार नहीं है कि बीजेपी सरकार ने किसी कांग्रेसी नेता को भारत रत्न सम्मान दिया हो, इससे पहले नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके पंडित मदन मोहन मालवीय को यह सम्मान दिया था.

पंडित मदन मोहन मालवीय को सर्वोच्च सम्मान देना एक नई परिपाटी की शुरुआत थी जिसका मक़सद हिंदूवादी छवि वाले नेताओं के लिए रास्ता बनाना था. मालवीय कांग्रेस में थे लेकिन वह नेहरूवादी सेक्युलर धारा के प्रतिनिधि नहीं, बल्कि लाला लाजपत राय की तरह उदार हिंदूवादी रुझान वाले नेता थे, यहां तक कि मालवीय ने 1909 में लाहौर में अखिल भारतीय हिंदू महासभा की बैठक की अध्यक्षता की थी.

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